Wednesday, September 12, 2007

दर्शन दे-दे बिजली मैया जियरा ब्‍लागिंग को तड़पे

कुछ समय पहले हमने जोर-शोर से घोषणा की कि अब तो हमारा नाम ब्‍लाग-जगत में नियमित लेखकों में शुमार होकर रहेगा। पर हाय रे किस्‍मत! हमारी बिजली मैया को ये घोषणा रास न आई। तब से लेकर आज तक बिजली हमें ठेंगा दिखा रही है कि लो बेट्टा कल्‍लो ब्‍लागिंग। बिजली मैया पहले भी अंतर्धान होती थी पर इस बार से कुछ ऐसा संयोग बना कि जब भी कुछ लिखने का आइडिया दिमाग में आया बिजली गुल। लगता है हमारे दिमाग और बिजलीघर के फ्यूज वायर का कुछ संबंध है तभी तो इधर कुछ लिखने के बारे में दिमाग पर जोर डाला, उधर बिजली गुल। शायद ज्‍यादा लोड नहीं झेल पाता।

चंबल क्षेत्र में बारिश के मौसम में बाजरे की फसल बहुत होती है। पर हर साल की तरह इस बार भी बारिश कम हुई तो किसानों के मुंह लटक गए। पर हमें क्‍या ! हम न तो बाजरा उगाते हैं, न खाते हैं। हम क्‍या जानें किसानों का दर्द। पर जबसे बिजली मैया ने हमें तरसाना शुरू किया तब हमें जाकर किसानों का दर्द समझ में आया कि कैसे वो टकटकी लगाकर बादलों का इंतजार करते हैं। वैसे भी भारत में बिजली और मानसून में बहुत समानता है। किसान लोग फसल के लिए मानसून की बाट जोहते हैं और दूसरे शहरी लोग अपने रोजमर्रा के कामों के लिए बिजली की। वैसे आजकल हमारे प्रदेश की सत्‍ताधारी पार्टी भी अपने विकास कार्यों की ढपली बजाते हुए विकास शिविर लगाकर लोगों को बता रही है कि पिछले समय में प्रदेश में कितना धुंआधार विकास हुआ है। पर लोगों को उनकी बात समझ में ही नहीं आती उन्‍हें तो 24 घंटे बिजली चाहिए। चौबीस घंटे तो भैया सूर्य देव भी अपना प्रकाश नहीं देते फिर ये तो बिजली है।

हमारे दिमाग में यकायक एक खयाल आया कि क्‍यों न गुलजार साब को ही एक चिट्ठी लिख दें। सुना है हाल ही में उन्‍होंने माचिस की बजाय जिगरे से बीड़ी जलाने का तरीका ईजाद किया है। उसी तरह उनसे गुजारिश कर दें कि बिना बिजली के हिन्‍दी ब्‍लागर्स के लिए भी ब्‍लागिंग करने का कोई फार्मूला निकालें। वैसे भी उनका हिन्‍दी के विकास में बड़ा योगदान है। थोड़ा और सही। पर हमें इधर भारतीय डाक विभाग पर भरोसा नहीं रहा कि वो हमारी चिट्ठी पहुंचा ही देगा या लेटरबाक्‍स में पानी भरने से उसका राम नाम सत्‍त हो जाएगा। सो ब्‍लागर बंधुओं से भी गुजारिश है कि वे भी अपने स्‍तर पर प्रयास करके ये संदेश गुलजार साब तक पहुंचाएं।

खैर एकमात्र खुशी की बात यह है कि अभी-अभी हमारे निकटवर्ती शहर के ब्‍लागर मित्र प्रतीक पाण्‍डे की तरफ से एक सुझाव आया है। उन्‍होंने बड़ी नेक सलाह दी है कि जब भी कोई नया आइडिया दिमाग में कुलबुलाए उसे डायरी पर नोट कर लीजिए। फिर जब भी बिजली मैया की कृपा हो तो टुकड़ों-टुकड़ों में उसे टाइप कर डालिए और कर दीजिए पोस्‍ट। सो प्रतीक भाई की सलाह मानकर यह पोस्‍ट लिखी जा सकी है। इसलिए इसका श्रेय भी उन्‍हीं को दिया जाना चाहिए। हां, यदि गलती से आपको ये पोस्‍ट अच्‍छी लगे तो श्रेय अपुन को भी दिया जा सकता है।:)

11 comments:

Sanjeet Tripathi said...

प्रतीक भाई ने सही सलाह दी आपको!!

सही लिखा है आपने!!

तो इसी बहाने आप कागज़ पर फ़िर से लिखते भी रहेंगे!

Anonymous said...

अगर शीर्षक ये होता, तो और भी मज़ा आता: दर्शन दे दे बिजली मैया, जियरा ब्‍लॉगिंग ब्‍लॉगिंग तड़पे...

ePandit said...

सही लिखे भुवनेश भाई, आपका दर्द अच्छी तरह समझ सकता हूँ। अपनी भी जून-जुलाई में यही कहानी होती है। वो कहते हैं न गूंगे की भाषा गूंगा जाने।

खैर इसका एक उपाय है - विण्डोज लाइव राइटर। ऑफलाइन किश्तों में ड्राफ्ट बना कर पोस्ट लिखें और पूरी होने पर पब्लिश कर दें। बहुत सही चीज है, एक बार आजमा कर जरुर देखें।

Udan Tashtari said...

श्रीश मास्साब

क्या ये विंडो लाईव राईटर बिना बिजली के चलता है? बड़े ज्ञान की बात बता देते हैं आप कभी कभी. :)

Sajeev said...

लो भइया समस्या का समाधान मिल गया न ... अब तो क्लोस उप सामैल्वा दे दो

Gyan Dutt Pandey said...

"क्या ये विंडो लाईव राईटर बिना बिजली के चलता है? बड़े ज्ञान की बात बता देते हैं आप कभी कभी. :)"

समीर लाल जी के साथ यही गड़बड़ी है. हमसे पहले पंहुचते हैं टिप्पणी करने. यह सवाल तो हम पूछने वाले थे, पर टैलीपैथी से वे पूछ बैठे.
पर जवाब कौन देगा - श्रीश तो ये ज्जा और वो ज्जा! बचे भुवनेश, उनके यहां लाइट ही नहीं आ रही होगी!

Manish Kumar said...

तो ये थी वज़ह आपकी गुमशुदगी की. आशा है बिजली मैया की आप पर जल्द ही कृपा होगी.

ePandit said...

"श्रीश मास्साब

क्या ये विंडो लाईव राईटर बिना बिजली के चलता है? बड़े ज्ञान की बात बता देते हैं आप कभी कभी. :)"


लाइव राइटर बिना बिजली नहीं चलता जी, दरअसल आप मेरी बात का मंतव्य नहीं समझे।

मेरा मतलब ये है कि जब भी बिजली बीच-बीच में रहे, लाइव राइटर में पोस्ट लिखकर सेव करते रहिए। ऐसे किश्तों में करते करते जब पोस्ट पूरी हो जाए तो जब बिजली हो पब्लिश कर दीजिए।

Udan Tashtari said...

नाराज न हों, अब समझ गये न भई..साफ सफ लिखा करो न!! :)

कैसे मास्साब हो, शिष्यों की बात दिल से लगाते हो..गन्दी बात!!

Anonymous said...

वाह वाह ,मज़ा आ गया ,बहुत ही उम्दा लिखा है आपने ,इस छोटी सी कड़ी में काफी बड़ी बात कह गए ..अच्छा लगा आपको पढ़ के , ॥जारी रखें ,जल्दी ही आपके ब्लोग पे फिर आना होगा ...और हां आप का हमारे ब्लोग पर भी स्वागत है .

Gaurav Garg said...

अच्छा है... बडी ही उम्दा लिखा है... आपने पूरे देश की व्यथा कथा को बडे ही प्रभावी एवं सरल रूप मॆं प्रस्तुत किया है। ज़ारी रखियेगा...